नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन काल में उच्च शिक्षा का केंद्र जो था। इसकी स्थापना गुप्त वंश के साशक कुमार गुप्त द्वारा की गयी थी।
प्रसिद्ध गतिज्ञ आर्यभट्ट इसी विश्वविद्यालय के अध्यापक थे। जिन्होंनें शून्य की खोज की थी।
इस विश्वविद्यालय में भारत ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की आदि देशों से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
यह विश्वविद्यालय में मुख्य रूप से खगोलशास्त्र, गणित, आध्यात्म, और आयुर्वेद की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
इस विश्वविद्यालय को 12वीं सदी में मुस्लिम आक्रांता बख्तियार खिलजी द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया। जिसके बाद इस शिक्षा के केंद्र का महत्व कम होता गया।
इसके खंडहर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।
वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय फिर से अपने पुराने अस्तित्व को प्राप्त करने की तयारी कर रहा है। भारत सरकार द्वारा इसके नए परिसर का निर्माण करा दिया गया है।
इस आधुनिक नालन्दा विश्वविद्यालय में अत्याधुनिक सुविधायें पुस्तकालय, शोध केंद्र, प्रयोगशालाएं, और आवासीय सुविधाएं छात्रों और शिक्षकों के लिए एक उत्कृष्ट शैक्षिक वातावरण प्रदान किया गया है